Apr 25, 2022
पारस हॉस्पिटल गुडग़ांव के चिकित्सकों की टीम ने अपर गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ब्लीडिंग और स्प्लीन (तिल्ली) के रक्त स्त्राव की गंभीर समस्या से पीड़ित एक इराकी मरीज का सफल इलाज किया
गुरुग्राम , 13 सितंबर, 2017 26 वर्षीय इराकी मरीज, श्री सलाम अब्दुलरिधा घैर ईजिप्ट जैसे कई देशों में इलाज के लिए संघर्ष करने के बाद भारत आए थे। वे शरीर के एब्डॉमिनल हिस्से में दर्द, तिल्ली के बढऩे, कमजोरी व खाना न खा पाने की गंभीर समस्याओं सो पीड़ित थे।
इलाज की उम्मीद में इराक व ईजिप्ट के कई अस्पतालों में उनकी कई बार एंडोस्कोपी हुई व खून भी बदला गया, जबकि कहीं भी बीमारी की उचित जांच नहीं की जा सकी। 4 वर्षों तक वे शरीर के एब्डॉमिनल हिस्से में तेज दर्द से पीड़ित थे व उनके हीमोग्लोबिन का स्तर 6 तक पहुंच जा रहा था। सिर्फ इतना ही नहीं, उनके प्लेटेलेट्स भी अचानक कम हो जा रहे थे।
यह सिर्फ सही ढंग से जांच न किए जाने का मामला था। पारस अस्पताल गुरुग्राम में उन्हें लाए जाने के बाद कई जांचें हुईं, जिनमें साफ तौर पर पता चला कि समस्या कुछ नहीं, बल्कि तिल्ली में रक्त स्त्राव की ही थी।
पारस हॉस्पिटल गुडग़ांव के सामान्य एवं लैप्रोस्कोपिक सर्जरी विभाग के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. राकेश दुरखुरे के अनुसार , श्मरीज को बेहद गंभीर हालत में हमारे अस्पताल में लाया गया था। गैस्ट्रिक ब्लीडिंग को रोक पाने की उम्मीद में उन्हें 14 ग्लू इंजेक्शंस लगाए जा चुके थे पर फिर भी बिलकुल आराम नहीं मिला था। उसके बाद मरीज को सही इलाज व ठीक होने की उम्मीद में भारत लाया गया, जब वे गुरुग्राम के पारस अस्पताल आए तो उनकी स्थिति काफी गंभीर थी। समस्या का सही कारण नहीं पता चला था पर फिर भी लंबा इलाज चला, जिसके कारण उनकी स्थिति अधिक गंभीर हो गई थी। इस तरह की समस्याओं में 4 वर्षों की बहुत अधिक हो जाती है। सही मायने में तो इसकी जांच काफी पहले की स्टेज में हो जानी चाहिए थी।
चिकित्सकों व विशेषज्ञों की एक टीम ने इस मरीज को बहुत ध्यान से देखा। डॉ. दुरखुरे ने मरीज की जांच के बाद बताया कि मुख्य समस्या तिल्ली की थी, जिसके साथ ही पोर्टल तंत्र में तनाव बढ़ रहा था, जिसके कारण मरीज के गैस्ट्रिक रक्त स्त्राव हो रहा था। सामान्य एवं लैप्रोस्कोपिक सर्जरी विभाग के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. राकेश दुरखुरे ने डॉ. आलोक के साथ मिलकर इस ऑपरेशन को लीड किया था व डॉ. रजनीश मोंगा गैस्ट्रिक फिजिशियन थे।
डॉ. राकेश दुरखुरे ने विस्तार से बताया , जांच के बाद मरीज की स्प्लीनेक्टोमी करवाई गई थी। इस जांच में तल्ली को ब्लड वेसेल्स के बीच बेहद उलझा हुआ पाया गया था। तल्ली को जगह पर रखने वाले लिगामेंट्स को हटाते हुए इस अंग को शरीर से अलग कर दिया गया था।
उचित जांच न हो पाने के कारण इलाज में अत्यधिक देरी हो गई थी, जिसकी वजह से यह सर्जरी बेहद चुनौतीपूर्ण बन गई थी। श् सभी चुनौतियों में से जो प्रमुख चुनौती थी, वह यही थी कि मरीज की तल्ली 3.1 किलो की थी और पहले लगाए गए ग्लू इंजेक्शंस के कारण उसके आसपास के ब्लड वेसेल्स आंशिक तौर पर नष्ट हो गए थे। दूसरी बड़ी चुनौती थी कि रक्त चाप को निम्न स्तर पर कैसे रखा जाए। सर्जरी के दौरान ब्लीडिंग को रोकने व स्प्लीनिक नस को किडनी की बाईं नस से जोडऩे के लिए ऐसा करना आवश्यक था। ये दोनों ही वेसेल्स किसी पारदर्शी पॉलीथिन जैसे महीन थे, इतने महीन आज तक हमने कभी देखे ही नहीं थे। इन सभी प्रमुख चुनौतियों व हीमोग्लोबिन के स्तर के कम होने व प्लेटेलेट्स के गिरने के बावजूद इस सर्जरी को बिना अतिरिक्त खून की कमी हुए 5 घंटे में सफलतापूर्वक संपन्न किया गया था।
इस केस के बाद एक बार फिर यह बात साबित हो गई है कि सही समय पर जांच व उचित इलाज कितना जरूरी होता है। स्वास्थ्य की गलत जांच मरीज के स्वास्थ्य के लिए बहुत घातक साबित हो सकती है। हालांकि इस मामले में हम काफी शुक्रगुजार हैं कि मरीज को बहुत जल्दी आराम मिल गया, बल्कि उन्होंने अगले दिन से ही खाना खाना भी शुरू कर दिया था। खुश व संतुष्ट श्री सलाम अब्दुलरिधा घैर को ऑपरेशन के 4 दिन बाद ही अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी।