Apr 25, 2022
दरभंगा के एक अन्य हाॅस्पिटल में भर्ती मरीज को कार्डियेक अरेस्ट आने के बाद पारस ग्लोबल हाॅस्पिटल में लाया गया |
पारस में भी कार्डियेक अरेस्ट आने के बाद मरीज को पेस मेकर इम्प्लांट कर ठीक किया गया, अब वह पूर्ण स्वस्थ्य है |
दरभंगा, 24 नवम्बर: अस्पताल में भर्ती मरीज को तीन बार कार्डियेक अरेस्ट आने के बावजूद पारस ग्लोबल हाॅस्पिटल, दरभंगा में इलाज कर उसकी जान बचाई गई। उसे पेस मेकर लगाना पड़ा, मरीज का इलाज करने वाले हाॅस्पिटल के जाने माने हृदय रोग विशेषज्ञ डाॅ. ज्योति प्रकाश कर्ण ने बताया कि दरभंगा के सर्वोत्तम हृदय केन्द्र में भर्ती मरीज 52 साल के बिनोद मंडल को कार्डियेक अरेस्ट आने के बाद वहां से पारस ग्लोबल हाॅस्पिटल लाया गया। उस समय मरीज बेहोश था। उसका ब्लड प्रेशर और उसका पल्स नहीं मिल रहा था तथा उसे आॅक्सीजन की भी कमी हो गई थी। इसका मतलब कि वह कार्डियेक अरेस्ट में चला गया था। आपातकालीन विभाग के डाॅ. सुमित कुमार ने उसे एडवांस कार्डियेक लाइफ सपोर्ट (ए.सी.एल.सी.) तथा कार्डियेक पल्मोनरी रेससराइटेशन (सी.पी.आर.) की प्रक्रिया शुरू की। इसके बाद उसे तुरंत वेंटीलेटर पर रखकर दवाइयां दी गयी। स्थिति में सुधार हो ही रहा था कि दो मिनट बाद उसे फिर कार्डियेक अरेस्ट आ गया। फिर डाॅ. सुमित ने सी.पी.आर. की प्रक्रिया शुरू की तो उसकी स्थिति समझ गयी। कार्डियेक अरेस्ट की घटना कुल मिलाकर तीन बार हुई।
डाॅ. कर्ण ने बताया कि इसके बाद ले जाकर टेम्परोरी पेस मेकर इम्प्लांट (टीबीआई) किया गया तो उसकी स्थिति में सुधार किया गया। बाद में उसे स्थायी रूप से पेसमेकर इम्प्लांट कर दिया गया। तीन दिन तक पारस अस्पताल में रखने के बाद उसे छुट्टी दे दी गयी। अब वह पूर्ण स्वस्थ है तथा अपना सारा काम स्वयं कर रहा है। उन्होंने कहा कि पारस ग्लोबल हाॅस्पिटल में जान बचाने के सभी अत्याधुनिक उपकरण और सुविधाएं मौजूद है, इसलिए हम लोगों की जान बचा पाते हैं।
मरीज के ठीक हो जाने के बाद उसके परिजनों ने बताया कि हमें उम्मीद नहीं थी कि वह इस तरह स्वस्थ्य हो पायेंगे, यह तो पारस हाॅस्पिटल था कि वह पूर्णतः ठीक हो पाये। मरीज बिनोद मंडल ने स्वस्थ हो जाने के बाद पारस हाॅस्टिल, डाॅ. सुमित और डाॅ. ज्योति प्रकाश कर्ण की तहेदिल से शुक्रिया अदा की।
डाॅ. सुमित ने बताया कि मरीज के परिजनों ने दरभंगा से कहीं बाहर ले जाने के बजाय यहां लेकर आ गए। इसलिए उसकी जान बच गई क्योंकि कार्डियेक अरेस्ट अक्सर इलाज कराने का समय नहीं देता है।