Apr 25, 2022
साढ़े तीन घंटे आॅपरेशन कर हाॅस्पिटल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डाॅ. रिचा मिश्रा पांडेय ने बच्चादानी निकालकर उसकी जान बचाई
वह सर्वाइकल एवटोपिक प्रेग्नेंसी नामक दुर्लभ बीमारी से पीड़ित थी जो करोड़ों में एक को होती है, बचाने के लिए बच्चादानी निकालना ही था विकल्प
पटना 26 नवम्बर 2018: करीब डेढ़ महीने से लगातार रक्तस्राव (ब्लीडिंग) से से जूझ रही 32 साल की महिला का पारस एचएमआरआई सुपर स्पेशिलिटी हाॅस्पिटल, राजा बाजार, पटना में आॅपरेशन कर उसकी जान बचाई वह सर्वाइकल एक्टोपिक प्रेग्नेंसी नामक दुर्लभ बीमारी से पीड़ित थी। यह बीमारी करोड़ों में एक महिला को होती जिसका प्रतिशत 0.1 है। मूलतः दरभंगा की रहनेवाली इस महिला को पहले दरभंगा के कई डाॅक्टरों और अस्पताल में इलाज कराया गया, फिर पटना में कई डाॅक्टरों और हाॅस्पिटलों में ले जाया गया, पर कहीं उसका रक्तस्राव बंद होने का नाम नहीं ले रहा था। तब उसे पारस एचएमआरआई हाॅस्पिटल के इमरजेंसी विभाग में भर्ती किया गया जहां रिचा मिश्रा पांडेय एवं उनकी टीम ने साढ़े तीन घंटे का आॅपरेशन कर उसकी बच्चादानी (यूट्रस) निकाल कर उसकी जान बचाई।
उसका आॅपरेशन करने वाली हाॅस्पिटल के स्त्री रोग विशेषज्ञ डाॅ. रिचा मिश्रा पांडेय ने यह जानकारी देते हुए बताया कि जब उसे यहां लाया गया, उस समय उसका बी.पी. काफी लो था, हिमोग्लोबिन 5.1 था। उसे खून चढ़ाया जाता था, जो ब्लीडिंग होने पर निकल जाता था। उन्होंने कहा कि साधारणतया गर्भ बच्चादानी में ठहरता है, लेकिन इसका गर्भ बच्चादानी के मुंह पर था। बच्चादानी के मुंह पर वाले गर्भ में लगातार रक्तस्राव होता है और शुरूआती समय में औषधी द्वारा इलाज संभव है। इसे सर्वाइकल एक्टोपिक प्रेग्नेंसी नामक बीमारी कही जाती है जो एक असाधारण बीमारी है। उन्होंने कहा कि मुझे पहली बार अंदरूरनी जांच में ही शक हुआ था कि इसकी बच्चादानी का मुंह फूला हुआ है, तब मैंने अन्य जांच करायी तो उसमें मेरी पहली जांच की पुष्टि हो गयी। इस बीमारी के इलाज के लिए एक ही विकल्प बचा था कि इसकी बच्चादानी निकाल दिया जाये, तब हमने इसे आॅपरेशन कर इसकी बच्चादानी निकाल दी। आॅपरेशन के बाद रक्तस्राव बंद हो गया और अब वह पूर्ण रूप से स्वस्थ्य हो गयी है।
डाॅ. पांडेय ने कहा कि अगर हम दो घंटे के अंदर इसका आॅपरेशन कर बच्चादानी नहीं निकालते तो इसके बचने की संभावना क्षीण हो जाती। इसलिए बच्चादानी निकाला गया। आॅपरेषन की गई महिला का एक लड़का है। वह भी सिजेरियन से हुआ था। उन्होंने कहा कि इसे कुल मिलाकर 4 यूनिट खून और 6 यूनिट एफएफबी नामक ब्लड प्रोडक्ट भी दिया गया। इस आॅपरेशन में मेरी सहयोगी डाॅ. अमृता तथा स्त्री विभाग की प्रोग्राम हेड डाॅ. शमामा नसरीन ने मेरा उत्साह बढ़ाकर मेरी मदद की। डाॅ. नसरीन ने कहा कि हमारे यहां किसी भी मरीज का इलाज उच्चस्तरीय डाक्टरों की टीम द्वारा की जाती है, इसलिए इस तरह की गंभीर बीमारी का इलाज हम यहाॅ पारस में कर पाते हैं। उन्होंने कहा कि इलाज के लिए हमारे यहां एक से एक अत्याधुनिक उपकरण और सुविधाएं उपलब्ध हैं जिसकी बदौलत हम आसानी से इलाज कर पाते है। इस आॅपरेषन में डाक्टर श्रीनरायण (एनेस्थिसिया हेड), डाक्टर प्रषांत (हेड क्रिटिकल केयर) एवं डाक्टर पिन्टू कुमार सिंह (जनरल सर्जरी) का भी बहुत बड़ा योगदान रहा।