Apr 25, 2022
‘जीत’नामके इस सपोर्ट ग्रुप में वे मरीज शामिल होंगे जो पहले पारस हॉस्पिटल गुड़गांव में इलाज करा चुके हैं, और उन्हेँ हर महीने के दूसरे व चौथे बुधवार को निशुल्क परामर्श उपलब्ध कराया जाएगा।
गुड़गांव, 8 जून 2018: न्युरोलॉजिकल बीमारियोँ से पीडित लोगोँ के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को और विस्तार देते हुए पारस हॉस्पिटल, गुडगांव एक स्पोर्ट ग्रुप की शुरुआत कर रहा है। ब्रेन ट्युमर डे के उपलक्ष्य में शुरू किए जा रहे इस ग्रुप का मकसद होगा इस हॉस्पिटल में इलाज करा चुके मरीजोँ को निशुल्क परामर्श की सुविधा देना। ‘जीत’नाम के इस सपोर्ट ग्रुप की शुरुआत डॉ. (प्रोफेसर) वी. एस. मेहता करेंगे जोकि पारस हॉस्पिटल, गुडगांव के न्युरोसाइंसेज विभाग के चेयरमैनहैं।
पारस हॉस्पिटल, गुडगांव के न्युरोसाइंसेज विभाग के चेयरमैन डॉ. (प्रोफेसर) वी. एस. मेहता ने कहा कि, “यह सपोर्ट ग्रुप मरीजोँ को स्वस्थ्य और बेहतर जीवन जीने में सहयोग और प्रोत्साहन देने के लिए काम करेगा। यह इलाज के सम्बंध में दिशानिर्देश और काउंसलिंग भी देगा। साथ ही मरीज के रीहैबिलिटेशन में सहयोग और उसकी देखभाल करने वाले व्यक्तियोँ को भी प्रशिक्षित करेगा।“
यह ग्रुप ब्रेन ट्युमर के मरीजोँ को प्रत्येक माह के दूसरे और चौथे बुधवार को शाम 3 बजे से 5 बजे के बीच निशुल्क परामर्श मुहैया कराएगा।
भारत में ब्रेन स्टेम सर्जरी के बेहतरीन विशेषज्ञोँ में से एक डॉ. (प्रोफ.)मेहता ने कहा, “ग्लिओमा का पारिवारिक इतिहास और जीवन के किसी भी पडाव पर आयनित रेडिएशन का एक्सपोजर बीमारी के खतरे को बढा देता है। भारत में ब्रेन ट्युमर के इलाज हेतु बहुत सारे विकल्प उपलब्ध हैं। मगर, इलाज के बाद मरीज के स्थिति पर नजर रखना भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। हमारी इस नई पहल का उद्देश्य है ब्रेन ट्युमर के मरीजोँ को दोबारा जीवन के सामान्य प्रवाह में लौटाना।”
ब्रेन ट्युमर के मामले लगातार बढ रहे हैं, हालांकि इसके साथ-साथ बीमारी के ज्यादातर मामलोँ का पता भी चल रहा है क्योंकि मेडिकल साइंस और जांच की तकनीकोँ में भी दिनो-दिन विकास हो रहा है, जिसकी मदद से सही जांच कर पाना सम्भव हो गया है। पहले मेडिकल साइंस इतना एड्वांस नहीं था, जिसके कारण ब्रेन ट्युमर के बहुत सारे ममलोँ का पता नही लग पाता था। अब अगर बार-बार सिरदर्द, उल्टी, आंख की रोशनी में कमी, और अन्य लक्षण जैसे कि एंडोक्रेनियल डिस्टर्बेंस, क्रेनियल नर्व पेल्सी आदि सामने आए तो मरीज को एमआरआई करा लेनी चाहिए, जिससे यह पता लग जाए कि उसे ब्रेन ट्युमर तो नहीं है। इसके अलावा, अगर ट्युमर स्पीच एरिया में है तो मरीज के बातचीत के अंदाज में फर्क दिखेगाऔर अगर ट्युमर मोटर एरिया में बन रहा होगा तो मरीज के मोटर फंक्शन पर असर दिखेगा।
मूल रूप से ब्रेन ट्युमर के लक्षणोँ का चार हिस्सोँ में विभजित कर सकते हैं। एक, ब्रेन के किस हिस्से में यह बन रहा है इस आधार पर, दूसरा ब्रेन के बहुत सारे हिस्से पर कब्जा करने की वजह से पडने वाले इंट्राक्रेनियल प्रेशर के लक्षणोँ के आधार पर, तीसरा मिर्गी अथवा दौरा पडने की स्थिति में, और चौथा ट्युमर कफ सम्बंधी एरिया से जिसकी वजह से हार्मोनल असंतुलन दिखाई देता है। ट्युमर कैंसरस भी हो सकते हैं और ऐसे भी हो सकते हैं जो कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। ब्रेन के ग्लियल सेल्स से शुरू होने वाले ट्युमर अक्सर घातक होते हैं, मगर ब्रेन के कवरिंग अथवा क्रेनियल नर्व व पीयूष ग्रंथि की ओर से शुरू होने वाले ट्युमर आमतौर पर खतरनाक नहीं होते हैं और बेहद धीमी गति से बढते हैं।
जिस तरह का मामला होता है उसके हिसाब से बीमारी का इलाज तय किया जाता है, जिनमेँ घातक मामलोँ के लिए सर्जरी और अगर जरूरत हो तो इसके बाद रेडियोसर्जरी और कीमोथेरेपी भी की जाती है। ब्रेन ट्यूमर का इलाज बेहद जटिल होता है क्योंकि इसमेँ थोडी सी भी गलती ब्रेनके अन्य हिस्से को डैमेज कर सकती है। ऐसे में इस तरह की सर्जरी के लिए एक डेडिकेटेड न्युरोसर्जरी टीम की जरूरत होती है, जिसमेँ न्युरोइंटरवेंशनिश्ट. न्युरोरेडियोलॉजिस्ट, न्युरोएनेस्थेटिस्ट के सहयोग और बेहतरीन संसाधन व आधुनिक तकनीकोँ से लैश ऑपरेशन थिएटर की जरूरत होती है। एक ऐसी बेहतरीन टीम जिसने ब्रेन ट्युमर के तमाम जटिलतम मामलोँ का इलाज किया है, का हिस्सा बनकर बेहद खुशी होती है।
आज आधुनिक संसाधनोँ और तकनीकोँ की उपलब्धता के चलते ब्रेन ट्युमर की सर्जरी में भी उतने ही बेहतरीन परिणाम आने लगे हैं, जितने कि शरीर के किसी अन्य हिस्से की।ऐसे में मरीजोँ को ब्रेन सर्जरी कराने से डरना नहीं चाहिए। अगर वे वक्त पर पहुंचेंगे, तो उनकी सर्जरी का रिजल्ट भी बेहतरीन होगा।