Apr 25, 2022
बच्चों में ब्लड कैंसर की सही समय पर पहचान महत्वपूर्ण: डाॅ. अविनाष
वल्र्ड चाइल्डहूड कैंसर डे पर पारस एचएमआरआई हाॅस्पिटल में आयोजित कार्यक्रम में डाॅ. अविनाश कुमार सिंह ने कहा- कैंसर से मुक्त तथा कैंसर पीड़ित 25 बच्चे बच्चियों के लिए करायी गयी पेंटिंग प्रतियोगिता, बांटे गये पुरस्कार |
सही समय पर पहचान तथा इलाज के बाद 80 फीसदी बच्चे-बच्चियां हो सकते हैं रोग मुक्त, लम्बे इलाज को बीच में हरगिज न छोड़ें परिजन |
पटना, 15 फरवरी 2019: पारस एचएमआरआई सुपर स्पेशिलिटी हाॅस्पिटल, राजा बाजार, पटना के हिमैटोलाॅजी विभाग के अध्यक्ष एवं बोन मैरो ट्रांसप्लांट के विशेषज्ञ डाॅ. अविनाश कुमार सिंह ने कहा है कि ब्लड कैंसर से पीड़ित 80 फीसदी बच्चे-बच्चियां इलाज के बाद पूरी तरह से ठीक हो सकते हैं, बशर्ते कि समय रहते सही समय पर इस बीमारी की पहचान हो जाए। इस बीमारी का इलाज लम्बा चलता हैं विकसित देशों की तुलना में विकासशील एवं गरीब देशों में इस बीमारी से ग्रसित 20 प्रतिशत बच्चे-बच्चियां ही ठीक हो पाते हैं क्योंकि उनके परिजन बीच में ही इलाज करवाना छोड़ देते हैं। मरीज के कुछ हदतक ठीक हो जाने पर परिजन यह समझ बैठते हैं कि बीमारी ठीक हो चुकी हैं डाॅ. सिंह वल्र्ड चाइल्डहूड कैंसर डे के मौके पर हाॅस्पिटल परिसर में आज शुक्रवार 15 फरवरी को आयोजित हुए उरी किड्स नामक कार्यक्रम में आए ब्लड कैंसर से पीड़ित बच्चों तथा उनके परिजनों को संबोधित कर रहे थे। केन्द्र सरकार ने जैसे आतंकियों के सफाये के लिए सर्जिकल स्ट्राइक किया था। उसी की तर्ज पर पारस ने भी इस कार्यक्रम का नाम उरी किड्स दिया है।
उन्होंने कहा कि बच्चों में होनेवाले प्रमुख ब्लड कैंसरों में ए.एल.एल. (एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया) एवं लिम्फोमा प्रमुख कैंसर है। ब्रेन ट्यूमर दूसरे स्थान पर आता हैं इस बीमारी के लक्षण के बारे में उन्होंने कहा कि अगर शरीर पीला पड़ने लगे, गर्दन एवं कांख में लिम्प ग्रंथियों में सूजन आ जाए, जोड़ों एवं हड्डियों में दर्द रहे एवं शरीर के किसी अंग से खून अपने आप बहने लगे तो इसे गंभीरता से लेना चाहिए तथा शीघ्र हिमैटोलाॅजिस्ट डाॅक्टर से परामर्श लेना चाहिए। इस बीमारी का सत्यापन सी.बी.सी. एवं बोन मैरो जांच से होता है। इलाज की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि ए.एल.एल. मरीजों का इलाज कीमोथेरेपी विधि से किया जाता है। लेकिन कुछ मरीजों में बोन मैरो ट्रांसप्लांट की भी जरूरत पड़ सकती है। अन्य प्रकार के ब्लड कैंसर, जैसे लिम्फोमा एवं ए.एम.एल. (एक्यूट माइलाॅड ल्यूकेमिया) का इलाज कीमोथेरेपी से किया जाता हैं दो साल से 10 साल के बच्चों में ए.एल.एल. एवं लिम्फोमा 80 प्रतिशत मरीजों में इलाज के बाद ठीक हो जाता है।
डाॅ. सिंह ने कहा कि बच्चे-बच्चियों के परिजनों में इस बीमारी के प्रति जागरूकता जगाने के लिए इंटरनेशनल चाइल्डहूड कैंसर सोसाइटी (आई.सी.सी.एस.) यह डे मनाता है। इस डे के इस साल का थीम है नो मोर लाॅसेज, नो मोर पेन यानी कि इस कैंसर से अब कोई बच्चा न मरे और न कोई दर्द में रहे। उन्होंने कहा कि बिहार सरकार की ओर से ब्लड कैंसर के इलाज के लिए मरीज को 80 हजार रुपये का अनुदान एवं बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए 5 लाख रुपये का अनुदान दिया जाता है। इस मौके पर मनोचिकित्सक डाॅ. नीरज वेदपुरिया ने परिजनों को साहस के साथ बच्चों का इलाज करवाने का टिप्स दिया। आहार विशेषज्ञ डाॅ. संजय मिश्रा ने कैंसर पीड़ित मरीजों को खान-पान के बारे में विस्तृत जानकारी दी।
हाॅस्पिटल के रिजनल डायरेक्टर डाॅ. तलत हलीम ने कहा कि डाॅ. अविनाश के निर्देशन में ब्लड कैंसर मरीजों का इलाज हमारे यहां किया जाता हैं। जरूरत पड़ने पर बोन मैरो ट्रांसप्लांट भी किया जाता है। यह बिहार-झारखंड का इकलौता अस्पताल है जहां बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया जाता है।
जेनरल सर्जरी विभाग के डायरेक्टर और बिहार के जाने-माने सर्जन डाॅ. ए. ए. हई ने कहा कि बच्चों में ब्लड कैंसर से अब निराश होने की जरूरत नहीं है क्योंकि अब इसका सम्पूर्ण इलाज संभव है। उन्होंने कहा कि पारस हाॅस्पिटल में इलाज के लिए अत्याधुनिक सुविधाएं, मशीन एवं विशेषज्ञ डाॅक्टर मौजूद हैं। इसके इलाज के लिए बिहार से बाहर जाने की भी जरूरत नहीं है।
इस अवसर पर ब्लड कैंसर से पीड़ित तथा इस बीमारी से उबर चुके 25 बच्चों ने कार्यक्रम में भाग लिया तथा पेंटिंग प्रतियोगिता में अपने हाथ आजमाए। सभी बच्चों के पुरस्कार भी दिया गया। इस कार्यक्रम की शुरूआत कल जम्मू कष्मीर के फुलवामा में आतंकवादी हमले में शहीद जवानों को श्रद्धांजली देकर की गई।
इस मौके पर पारस कैंसर सेंटर के पदमश्री डाक्टर जे के सिंह, डाॅ. प्रोफेसर सी खंडेलवाल, डाॅ. आर. एन. टैगोर, डाॅ. सुमांत्रा सिरकार, डाॅ. शेखर केसरी ,डाॅ. मिताली डांडेकर लाल, डाॅ. स्नेहा झा, डाॅ. रिदू कुमार, डाॅ. अभिषेक आनन्द, डाॅ.दिव्या कृष्णा एवं डाॅ. स्नेहा भी मौजूद थीं।