Apr 25, 2022
मिनिमल इनवेसिव कार्डियेक सर्जरी (एम.आई.सी.एस.) के विशेषज्ञ डाॅ. अनुज कुमार ने छाती के नीचे मात्र 2 इंच का चीरा लगाकर दूरबीन से आॅपरेशन किया |
बिहार-झारखंड का यह इकलौता हाॅस्पिटल है जहां है एम.आई.सी.एस. की सुविधा, इस विधि से सर्जरी में मरीज को 2-3 दिन में अस्पताल से स्वस्थ होकर मिल जाती है छुट्टी |
दिल में छेद से महिला की धड़कन बढ़ रही थी और सांस लेने में हो रही थी परेषानी।
पटना 16 जनवरी 2019: पारस एचएमआरआई सुपर स्पेशिलिटी हाॅस्पिटल, राजा बाजार, पटना में दुरबीन पद्धति (की-होल टेक्नीक) से औरंगाबाद की 35 साल की एक युवती के हृदय का छेद बंद किया गया। बिना हड्डी काटे हृदय का आॅपरेशन करने को मिनिमल इनवेसिव कार्डियेक सर्जरी (एम.आई.सी.एस) कहा जाता है। बिहार-झारखंड का यह पहला हाॅस्पिटल है जहां एम.आई.सी.एस. पद्धति से आॅपरेशन किया जाता है। आॅपरेशन के तीसरे दिन उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गयी और अब वह पूर्ण स्वस्थ्य है तथा अपना सारा काम खुद कर रही है। उसके दिल में छेद है, इसका पता उसे तब चला जब उसके हृदय की धड़कन बेतरतीव ढ़ंग से बढ़ने लगी तथा सांस लेने में तकलीफ होने लगी। उसके परिजनों ने उसे देष के कई बड़े शहरों के सरकारी अस्पतालों में दिखाया। परिजनों ने उसे पारस एचएमआरआई हाॅस्पिटल में भर्ती कराया जहां हाॅस्पिटल के एम.आई.सी.एस. के विशेषज्ञ डाॅ. अनुज कुमार ने आॅपरेशन कर उसके दिल के छेद को बंद कर उसे राहत दिलायी। चुंकि इस महिला की आर्थिक हालत कुछ ठीक नहीं थी इसलिए उसके इलाज के लिए पारस अस्पताल ने मुख्यमंत्री राहत कोष से रकम भी दिलायी।
डाॅ. अनुज ने बताया कि हृदय में छेद जन्मजात होता है, लेकिन इसका पता तभी चलता है जब मरीज को किसी प्रकार की तकलीफ होती है। उन्होंने कहा कि अगर हम ओपन हार्ट सर्जरी करते तो हड्डियों को काटना पड़ता, घाव सूखने में 8-10 दिन का समय लगता तथा इंफेक्शन होने का भी रिस्क रहता, लेकिन एम.आई.सी.एस. में दो-तीन दिन में मरीज ठीक होकर घर चला जाता है। इस विधि से आॅपरेशन में छाती के नीचे 2 इंच का एक छोटा चीरा लगाया जाता है और फिर दूरविन विधि द्वारा छेद को बंद किया जाता है। इस विधि में खून का रिसाव कम होता है, जबकि ओपन सर्जरी में काफी खून निकलता हैं। दूसरी बात यह कि ओपन सर्जरी में उसकी छाती पर लम्बे चीरे का दाग नजर आता जबकि एम.आई.सी.एस. विधि से आॅपरेशन में चीरा का दाग छिप जाता है क्योंकि वह ब्रेस्ट के नीचे होता है। अब वह बिल्कुल स्वस्थ्य है, हृदय की धड़कन भी सामान्य हो गयी है तथा सांस लेने में तकलीफ भी नहीं है। इस आॅपरेषन में पारस अस्पताल के डाक्टर अतुल मोहन, अनेस्थििसिया रोग विषेषज्ञ डाक्टर राघवेन्द्र, डाक्टर सुभाष सिंह और दिलिप का भी काफी योगदान रहा।
डाॅ. अनुज ने बताया कि पारस अस्पताल में इलाज के लिए हमलोग मुख्यमंत्री राहत कोष से रकम दिलवा देते हैं जिससे गरीब को इलाज कराने में कोई परेशानी नहीं होती है। इसके लिए कुछ कागजात की जरूरत पड़ती है।