Apr 25, 2022
इस मामले में लडकी के मुख्य गर्भाशय के भीतर एक और छोटा सा गर्भाशय नजर आ रहा था। सिस्टिक एडिनोमायोमा, जिसे एक्सेसरी कैविएटेड यूटरीन मासेज (एसीयूएम) के नाम से भी जाना जाता है
22 वर्षीय मरीज, जो खुद मेडिकल की छात्रा हैं, को पिछले तीन वर्षोँ से गम्भीर डिसमनोरिया अथवा बेहद दर्द वाला पीरियड हो रहा था और समय के साथ उनकी स्थिति और भी खराब होती जा रही थी जिससे सिर्फ इंजेक्टेबल दर्द निवारक से ही थोडी राहत मिलती थी।
यह एक ऐसी अनोखी बीमारी है जिसके अब तक सिर्फ 75 मामले दर्ज हुए हैं और कुछ मुट्ठी भर मामलोँ का इलाज लैप्रोस्कोपिक तरीके से किया गया है।
इस सर्जरी को पद्मश्री डॉ. अल्का कृपलानी की अगुवाई में किया गया, जो कि एम्स की पूर्व प्रोफेसर और वर्तमान में पारस हॉस्पिटल्स हेड ऑफ मिनिमली इनवेसिव गायनेकॉलजी हैं। उनका साथ दिया डॉ. कुसुम भारद्वाज ने जो कि मिनिमली इनवेसिव गायनेकॉलजी की कंसल्टेंट हैं।
गुडगांव,11th अप्रैल 2019: पारस हॉस्पिटल्स, गुडगांव के डॉक्टरोँ की एक टीम ने एक 22 वर्षीय लडकी की लैप्रोस्कोपिक सर्जरी कर गर्भाशय सम्बंधी एक बेहद रेयर खामी का सफलता पूर्वक इलाज किया है। इस मामले में लडकी के मुख्य गर्भाशय के भीतर एक और छोटा सा गर्भाशय नजर आ रहा था। सिस्टिक एडिनोमायोमा, जिसे एक्सेसरी कैविएटेड यूटरीन मासेज (एसीयूएम) के नाम से भी जाना जाता है। एक बेहद अनोखी समस्या है जिसकी पता भी बेहद मुश्किल से लग पाता है, अब तक इस बीमारी के सिर्फ 75 मामले रिपोर्ट हुए हैं।
22 वर्षीय मरीज, जो खुद मेडिकल की छात्रा हैं, को पिछले तीन वर्षोँ से गम्भीर डिसमनोरिया अथवा बेहद दर्द वाला पीरियड हो रहा था और समय के साथ उनकी स्थिति और भी खराब होती जा रही थी। बहुत सारे डॉक्टरोँ जिनमेँ गायनेकॉलजिस्ट से लेकर साइकोलॉजिस्ट तक शामिल थे, से सलाह लेने के बावजूद उनकी समस्या की सही जांच नहीं हो सकी थी।
अंततः पारस हॉस्पिटल्स, गुडगांव के डॉक्टरोँ ने उनकी समस्या का सही कारण पता लगाया जिसके लिए उनके गर्भाशय की खामी का पता लगाने के लिए कई सारे विशेष प्रकार के टेस्ट किए गए।
पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित और एम्स की प्रो. रह चुकी एवम वर्तमान में पारस हॉस्पिटल्स, गुडगांव की हेड ऑफ मिनिमली इनवेसिव गायनेकॉलजी, डॉ. अल्का कृपलानी ने कहा कि, “मरीज को पहली बार माहवारी साइकल शुरू होने के 5 साल बाद उन्हेँ डिसमेनोरिया विकसित हुआ, क्योंकि उनके एक्सेसरी गर्भाशय में धीरे–धीरे रक्त इकट्ठा हो गया था, जिसके चलते सूजन और दर्द शुरू हुआ। उन्होने स्त्री रोग विशेषज्ञोँ से सलाह ली और उनका पोलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओडी) व फाइब्रॉइड्स का इलाज भी किया गया। यद्यपि, सामान्य ब्लड पैरामीटर्स के बावजूद, उनका दर्द कम नहीं हुआ। ऐसे में उनका अल्ट्रासाउंड और एमआरआई भी किया गया जिसकी रिपोर्ट में क्वेरी सब्सेरोजल फाइब्रॉइड पाया गया। उनकी रिपोर्ट को विशेषज्ञोँ द्वारा रिव्यू किया गया जिसमेँ एसीयूएम की आशंका जताई गई–यह एक ऐसी अनोखी बीमारी है जिसके अब तक सिर्फ 75 मामले दर्ज हुए हैं और कुछ मुट्ठी भर मामलोँ का इलाज लैप्रोस्कोपिक तरीके से किया गया है।“
शुरुआती दिनोँ में जहाँ मरीज का दर्द कुछ साधारण उपायोँ जैसे कि दर्द निवारक दवाएँ, नॉनस्टेरिडल एंटी इंफ्लेमेटरी ड्रग्स अथवा एनसेड्स और ओरल कंट्रासेप्टिव पिल्स आदि से कम हो जाता था, लेकिन समय बीतने के साथ, दर्द सिर्फ इंजेक्टेबल दर्दनिवारक दवाओँ से ही कम होता था। खास बात यह है कि, इस तरह की समस्या से पीडित अधिकतर महिलाओँ को सही समाधान नहीं मिल पाता है क्योंकि उनकी समस्या के सही कारण का पता ही नहीँ लग पाता है।
एक्ससरी और कैविएटेड यूटरीन मास (गर्भाशय क भीतर गर्भाशय) एक अनोखे प्रकार का डेवलपमेंटल मुलेरियन एनॉमली है। सामान्य गर्भाशय के भीतर एक छोटा गर्भाशय विकसित हो जाने से मरीज को गम्भीर डिस्मेनोरिया और पेडू में दर्द महसूस होता है। इस रेयर स्थिति का पता लगाने के लिए काफी विशेषज्ञता की जरूरत पडती है। कैविएटेड मास एक फंकशनल एंडोमेट्रियोसिस की लाइन से घिरा होता है और इसके चारोँ ओर नर्म मांसपेशीय कोशिकाएँ होती हैं जिससे इसका स्वरूप गर्भाशय के जैसा ही हो जाता है।
गायनेकोलॉजी में आधुनिक लैप्रोस्कोपिक सर्जरी के क्षेत्र में अग्रणी डॉ. कृपलानी कहती हैं, “हमने मरीज की सर्जरी के लिए एडवांस प्रॉसेस (लैप्रोस्कोपिक सर्जरी इसलिए अपनाया क्योंकि इसमेँ बेहतर सटीकता है और ऐसी सर्जरी के बाद मरीज बहुत जल्द काम पर लौट सकता है–लैप्रोस्कोपिक पद्धति ने इस युवा लडकी के लिए बेहतरीन विकल्प दिया जो बेहद दर्द की हालत में हमारे पास आई थी।“
मरीज को पूरी तरह से रिकवर हो जाने के बाद अगले दिन ही अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। मरीज को ऑपरेशन के बाद की देखभाल जैसे कि हर 6 माह में यूएसजी के बारे में बताया गया। वह एक महीने बाद जब फॉलोअप के इए आईँ तब उनका दर्द पूरी तरह से ठीक हो चुका था।
लडकी का इलाज करने वाली टीम में जो डॉक्टर शामिल हुए, वे हैं, डॉ. कुसुम भारद्वाज, कंसल्टेंट, डॉ. सीमा शर्मा, कंसल्टेंट।
इस मामले के मुख्य बिंदु–
एसीयूएम (एक्सेसरी एंड कैविएटेड यूटरीन मास अथवा गर्भाशय में गर्भाशय) एक बेहद रेयर जन्मजात बीमारी है, जो लि गम्भीर दर्द का कारण बन सकती है।
युवा लडकियोँ में गम्भीर डिस\मेनोरिया को सामान्य तौर पर नहीं लेना चाहिए क्योंकि इसका कारण एसीयूएम भी हो सकता है और ऐसे में कोई भी डॉक्टरी इलाज काम नहीँ आएगा।
गम्भीर दर्द झेल रहे मरीजोँ को आगे चलकर मानसिक तनाव हो जाता है जो धीरे–धीरे साइकलॉजिकल स्ट्रेस में बदल जाता है।
इस बारे में मरीजोँ के साथ–साथ डॉक्टरोँ (गायनेकोलॉजिस्ट /रेडियोलॉजिस्ट) में भी जागरूकता के प्रसार की आवश्यकता है। सटीक जांच और सर्जिकल प्रबंधन से समस्या पूरी तरह से ठीक हो जाती है और इससे मरीज के जीवन की गुणवत्ता में हमेशा के लिए बदलाव आ जाता है।
पारस हॉस्पिटल्स, गुडगांव देश के उन अग्रणी अस्पतालोँ में से एक है जहाँ न्युरोसाइंसेज, कार्डियोलॉजी, ऑर्थोपेडिक्स, नेफ्रोलॉजी, गैस्ट्रोइंटेरोलॉजी एवम क्रिटिकल केयर की सभी सुविधाएँ उपलब्ध हैं।